Sunday 15 March 2015

संहनन - Sehnan - Laghu Dandak -3

तीसरा संहनन द्वार.......

संहनन – अस्थि-रचना अथवा शरीर में कठोर भाग की रचना, जिसके आधार पर शरीर का ढांचा बनता है । (जैपाश-   298  

सामान्य भाषा में हड्डियों  की रचना विशेष  को संहनन कहते है। संहनन अस्थि की रचना विशेष है । यह वैक्रिय शरीर में नहीं होता है । वैक्रिय शरीर में अस्थि, शिरा और स्नायु नहीं होते, इसलिए उसे संहनन शून्य कहा गया है । औदारिक शरीर धारक में ही होता है ।

संहनन का अर्थ है – अस्थि-सरंचना । यह अर्थ श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों परम्पराओं में सम्मत है, किन्तु यह विमर्शनीय है । एकेन्द्रिय जीवों के अस्थि-रचना नहीं होती, फिर भी श्वेताम्बर परम्परा में उनके ‘शेवार्त’ तथा दिगम्बर परम्परा में ‘असंप्राप्त सृपाटिका संहनन’ माना गया है । इस आधार पर संहनन की व्याख्या अस्थि-रचना से हटकर करने की अपेक्षा है । एकेन्द्रिय के सन्दर्भ को ध्यान में रखकर इसकी व्याख्या यह की जा सकती है – औदरिक शरीर वर्गणा के पुद्गलों से होने वाली शरीर-रचना का नाम है संहनन । (भ-1 113)      

संहनन  छह हैं- 1 .वज्रऋषभनारच, ऋषभनारच, नारच, अर्धनारच, कीलिका, सेवार्त। ((ठांण 6/30)

वज्रऋषभनारच संहनन – संहनन का एक प्रकार । वह अस्थि-रचना जो वज्र-कील, ऋषभ-वेष्टन, नाराच-दोनों ओर मर्कटबन्ध (परस्पर गुंथी हुई आकृति) वाली हो – जिसमें दो हड्डियों के छोर परस्पर मर्कटबन्ध से बंधे हों, उस पर तीसरी अस्थि का वेष्टन तथा उप्पर तीनों हड्डियों का भेदन करने वाली कील लगी हो । (जैपाश-  256)

ऋषभनारच संहनन – संहनन का एक प्रकार, जिसमें हड्डियों की आंटी व वेष्टन होते है, कील नहीं होती । (जैपाश-  75)

नारच संहनन – अस्थिरचना का एक प्रकार, जिसमें अस्थि के दोनों तरफ मर्कटबन्ध होता है । (जैपाश- 154)

अर्धनारच संहनन – वह अस्थिरचना, जिसमें हड्डी का एक छोर मर्कटबन्ध से बंधा हुआ होता है तथा दूसरा छोर कील से बंधा हुआ होता है । (जैपाश- 35)

कीलिका संहनन – संहनन का एक प्रकार, जिसमें अस्थियों के छोर परस्पर जुड़े हुए होते है – एक दुसरे से बंधे हुए होते है । (जैपाश- 92)

सेवार्त संहनन – वह अस्थि-रचना, जिसमें दो हड्डियों के पर्यन्त भाग परस्पर एक दुसरे को स्पर्श कर रहे हों । (जैपाश- 321)       


क्रम. दण्डक संहनन  संख्या संहनन  नाम
1. नारकी, देवता,तथा सिद्धों
0
कोई भी संहनन नहीं
2.  5 स्थावर, 3 विकलेन्द्रिय, असंज्ञी तिर्यंच पंचेन्द्रिय, असंज्ञी मनुष्य 
1
सेवार्त
3. गर्भज मनुष्य, तिर्यन्च 
6
सभी
4. सर्व युगलिया, 63 श्लाका पुरुष 
1
वज्रऋषभनारच 

1.     अंतिम 3 संहनन वाले 7वें गुणस्थान से आगे नहीं जाते। 7 वें में उदय व्युच्छित्ति।
2.     देव या नारक बनने के लिए पूर्व भव में संहनन आवश्यक है।
3.     संहननवाला ही योग्यतानुसार देव गति, नरकगति में जाता है।

4.     वज्रृऋषभनाराच ,ऋषभनाराच ,नाराच,अर्द्ध नाराच ये संहनन  वज्रस्वामी के साथ विच्छिन्न हो गए।ऐसा दशवै कालिक की भूमिका में उल्लेख है। यानि अभी शायद अंतिम दो ही संहनन हैं।


अस्थि-संरचना का साधना  और  स्वास्थ्य  दोनों दृष्टियों  से विशेष  महत्त्व  है ।

शुक्ल ध्यान  की साधना  के लिए  और  मोक्ष-गमन के लिए  वज्रऋषभनारच  संहनन  का होना जरूरी है ।
उत्कृष्ट  साधना   की भांति  उत्कृष्ट  क्रूर कर्म भी इसी अस्थि-रचना वाले प्राणी  करते  हैं । मोक्ष और सांतवी नरक में नियमा वज्रऋषभनारच संहनन वाले जीव ही जाते है अर्थात् कि अति अच्छे और अति बुरे दोनों कार्यों में पूरी शक्ति और और उत्तम संहनन की आवश्यकता है

वज्रऋषवनाराच सहनन मोक्ष जाने के लिए व् सातवी नरक जाने के लिए जरूरी है । पर वो होने से मोक्ष जायेगें ही या सातवी नरक जायेंगे ही, यह जरूरी नहीं । जलचर मोक्ष नहीं जायेगा व् स्त्री सातवी नरक नहीं जायेगी । जलचर मोक्ष नहीं जायेगा व् स्त्री सातवी नरक नहीं जायेगी । जबकि दोनों के वज्रऋषवनाराच सहनन होता है ।          

क्या इस पंचम आरे में छहों ही संहनन हैं ?
नहीं है। इस पंचम आरे में भरत क्षेत्र से कोई मोक्ष नहीं जाता, इसका एक कारण वज्रऋषभनाराच संहनन का अभाव है । इसी तरह इस पंचम आरे में भरत क्षेत्र में निश्चित वज्रऋषभनाराच संहनन वाले यौगलिक और 63 श्लाका पुरुष भी नहीं होते । तो अभी इसलिए भरत क्षेत्र (वज्रऋषभनाराच संहनन का अभाव के कारण) में मोक्ष व सातवीं नरक दोनों का अभाव है ।

1.     सातवीं नरक में प्रथम संहनन वाले ही जा सकते हैं।
2.     छठी नरक में प्रथम दो संहनन वाले जा सकते हैं।
3.     पांचवीं नरक में प्रथम तीन यानि नाराच वाले संहनन वाले तक जा सकते हैं।
4.     चौथी नरक में प्रथम चार संहनन वाले ही जा सकते हैं।
5.     तीसरी नरक में प्रथम पांच संहनन वाले जा सकते हैं।
6.     प्रथम दो नरक में छहों संहनन वाले जा सकते हैं।
7.     सेवार्त वाले सिर्फ प्रथम दो ही नरक में जा सकते हैं।
8.     7वीं नरक का द्वार तो सिर्फ मनुष्य व जलचर तिर्यंच पंचेन्द्रिय के लिए ही खुला है । ____________________________________________________________________________
9.     प्रथम चार देवलोक में छह ही संहनन वाले जीव जा सकते हैं। भवनपति वाणव्यन्तर ज्योतिष्क में भी छह ही संहनन वाले जीव जा सकते हैं ।
10.  पांचवें, छठे देवलोक में प्रथम पांच संहनन वाले जीव जा सकते हैं।
11.  सातवें,आठवें देवलोक में प्रथम चार संहनन वाले जीव जा सकते हैं।
12.  नौवें से बारहवें देवलोक में प्रथम तीन संहनन वाले जीव जा सकते हैं।
13.  नौ ग्रैवेयक में प्रथम दो संहनन वाले जीव जा सकते हैं।
14.  पांच अनुत्तर विमान में प्रथम एक ही संहनन वाले जीव जा सकते हैं।


एक तथ्य उभर कर आया कि अभवी जीव भी ऋषभनाराच संहनन वाला हो सकता है । वज्रऋषभनाराच भी हो सकता है । वज्र ऋषभनाराच मोक्ष जाने के लिए आवश्यक है, पर जायेगा ही आवश्यक नहीं

सभी 63 शलाका पुरुष भवी ही होते हैं ।

आहारक शरीर के साथ क्या संहनन का सम्बन्ध है ?

आहारक शरीर के साथ प्रथम तीन संहनन का सम्बन्ध है। कारण: 7 गुण. के बाद प्रथम तीन संहनन का उदय नहीं।
तीन हीन संहनन वाले जीव तो श्रेणी चढ़ ही नहीं सकते । शरीर की शक्ति की अपेक्षा तीन प्रथम संहनन जोकि उत्तम है -उपशम श्रेणी चढ़ने वाले साधु इन तीन संहनन में से किसी एक संहनन वाले होते है किन्तु क्षपक श्रेणी चढ़ने के लिए अर्थात चारित्र मोहनीय के क्षय करने के लिए मात्र वज्रऋषभनाराच सहनन आवश्यक है! ये दोनों श्रेणी चढ़ने वाले मुनिराज की शारीरिक शक्ति की अपेक्षा अंतर होता है ।


संहनन – अस्थिसंचय से उपमित शक्ति विशेष, जैसे – देवों का शरीर । (जैपाश-298)

संहनन नाम – नामकर्म की एक प्रकृति, जिसके उदय से औदरिक शरीर में अस्थि तथा कठोर भाग की रचना होती है । (जैपाश-298)

संहनन बन्ध – अवयवों तथा पृथक-पृथक वस्तुओं का संघात । बैलगाड़ी के अवयवों का संयोजन देशसंहनन बन्ध और दूध-
पानी की भांति मिलन सर्वसंहनन बन्ध है । (जैपाश-299)

4 comments:

  1. Thanks Very Much Vikas ji
    Sushil Bafana

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  2. इसमें आपने लिखा है-
    "14. पांच अनुत्तर विमान में प्रथम एक ही संहनन वाले जीव जा सकते हैं।"

    लेकिन उपशम श्रेणी लेने वाला जीव प्रथम तीने ही संहनन वाले हो सकते हैं। यदि वो जीव ग्यारहवॉं गुण स्थान में मृत्यु को प्राप्त होता है तो निश्चित ही अनुत्तर विमान में जाता
    है।
    तो क्या यहां भी ये नियम है कि श्रेणी करने वाला जीव यदि प्रथम संहनन वाला हो तो ही ऐसा होगा?

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    1. जो जीव उपशम श्रेणी करते हुवे 11 गुण स्थान में काल करेगा वह नियमा पहले सहनन वाला ही होगा अन्यथा वह काल नही करेगा क्यो की बिना आयुष्य बंध के कोई भी जीव काल नही करता और आयुष्य बंध 1 से 7 गुणस्थान में 3 को छोड़ कर होता है और कोई भी जीव अनुत्तर विमान का आयुष्य बंध करता है तो वह जीव 1पहले सहनन वाला ही होगा और वही जीव 11 वे गुणस्थान में काल करेगा

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